Rajeev Rawat

Add To collaction

लेखनी कहानी -10-Feb-2022

(लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता के लिए   )                      
                                        
9.खत्म होते जंगल--एक लेख
------------------------------------
               हरे-भरे खूबसूरत पेड़...जहाँ तक नजर जाएँ, वहाँ तक हरियाली ही हरियाली.....कितनी सुखद लगती हैं ये बातें, लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। वर्तमान में सिर्फ ‘ एक हफ्ते में हमारी धरती पर से पांच लाख हैक्टेयर में फैला जंगल साफ कर दिया जा रहा है । ’ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार ‘हर साल धरती पर से एक प्रतिशत जंगल का सफाया किया जा रहा है । जो पिछले दशक से पचास प्रतिशत ज्यादा है ।’
ग्लोबल फारेस्ट वॉच को शुरू करने वाले डर्क ब्राएंट कहते हैं कि‘ सिर्फ बीस सालों के अंदर दुनिया भर के ४० प्रतिशत काट दिए जाएंगे । '

              शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है। घर के चौबारे में आम-नीम के पेड़ होना गुजरे वक्त की बात हो गई है। छोटे से फ्लैट में बोनसाई का एक पौधा लगाकर हम हरियाली को महसूस करने का भ्रम पालने लगें हैं।
                ऐसे समय में जब हमारे वैज्ञानिक हमें बार-बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं.। भयावह भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं.। यह आकड़ा दिल दहला देने के लिए काफी है। रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन, भारत के कई अनछुए माने जाने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं। 
                                       जंगल की कटाई की समस्या सबसे ज्यादा तीसरी दुनियाँ के देशों में विद्यमान हैं। विकास की प्रक्रिया से जूझ रहें इन देशों ने जनसंख्या वृद्धी पर लगाम नहीं कसी है। जिसके कारण वर्षा वन जो प्रकृति की खूबसूरत देन हैं, तेजी से काटे जा रहे हैं। जंगलों के कटने एक तरफ वातावरण में कार्बन डाई आक्साइट बढ़ रही हैं वहीं दूसरी ओर मिट्टी का कटाव भी तेजी से हो रहा है।
             भारतीय परिपेक्षय में बात करें तो तीसरी दुनियाँ से पहली दुनियाँ के देशों में शुमार होने को ललायित हमारे देश में जगंलों को तेजी से काटा जा रहा है। हिमालय पर्वत पर हो रही तेजी से कटाई के कारण भू-क्षरण तेजी से हो रहा है। एक रिसर्च के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिमी. तक पहुंच गई है। नतीजा कई बार ५०० से १००० प्रतिशत तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है। जिसके कारण नदियों में जलभराव कम हो रहा है। भारत की जीवनरेखा कहीं जाने वाली कई नदियाँ गर्मियों में सूख जाती हैं। वहीं बारिश में इनमें बाढ़ आ जाती है। हिमाचल और काशमीर में हाल ही के सालों में हुई तबाही का मुख्य कारण यहाँ के जगंलों की हो रही अंधाधुन कटाई ही है।
                  वनों की बेरहमी से हो रही कटाई के कारण एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है वहीं दूसरी और प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। कई जीव हमारी धरती से लुप्त हो चुके हैं। सही तरह से आँका जाए तो प्रलय का वक्त नजदीक नजर आ रहा है। इस प्रलय से बचने के लिए हमें तेजी से प्रयास करने होंगे।
           अब हर व्यक्ति को एक दो नहीं कम से कम दस पेड़ लगाने का वादा नहीं बल्कि पक्का इरादा करना होगा। चिपको आंदोलन को दिल से अपनाना होगा। तभी हम वक्त से पहले आने वाली इस प्रलय से बच सकते हैं ।
                   प्रकृति ने जल और जंगल के रूप में मनुष्य को दो ऐसे अनुपम उपहार दिए हैं जिनके सहारे कई दुनिया में कई सभ्यताएं विकसित हुई हैं, लेकिन मनुष्य की खुदगर्जी के चलते इन दोनों ही उपहारों का तेजी से क्षय हो रहा है। पानी के संकट को स्पष्ट तौर पर दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है और कई विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगला विश्वयुद्ध अगर हुआ तो वह पानी को लेकर ही होगा। जिस तेजी से पानी का संकट विकराल रूप लेता जा रहा है, कमोबेश उसी तेजी से जंगलों का दायरा भी सिकुड़ता जा रहा है। 
             जब मनुष्य ने जंगलों को काटकर बस्तियां बसाई थीं और खेती शुरू की थी, तो वह सभ्यता के विस्तार की शुरुआत थी। लेकिन विकास के नाम पर मनुष्य की खुदगर्जी के चलते जंगलों की कटाई का सिलसिला लगातार जारी रहने से अब लग रहा है कि अगर जंगल नहीं बचे तो हमारी सभ्यता का वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा। 
 
               विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर में  जंगलों की यह कटाई और छंटाई किसी खेती या बागवानी के लिए नहीं, बल्कि नए-नए नगर बसाने और उससे भी कहीं ज्यादा खनन के लिए हो रही है।वन क्षेत्र में धड़ल्ले से हो रहे हरे वृक्षो की अवैध कटाई से जंगल विरान हो रहे हैं। प्रत्येक वर्ष पौधरोपण के नाम पर विभाग की ओर से लाखों पेड़ तो लगाए जाते हैं। लेकिन अधिकांश पौधे जंगलों में नजर नहीं आते। बचेखुचे पेड़ भी विभाग की उदासीनता के चलते प्रति वर्ष आग की भेंट चढ़ जा रहे हैं। 
                      अवैध वनों के कटाई से न सिर्फ प्राकृतिक संपदा की छति हो रही है बल्कि कोरोना महामारी के इस दौर में आक्सीजन की कमी से लोगों को दम तोड़ते हुए भी देखा जा रहा है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी लापरवाह बने हुए हैं। सूत्रों की मानें तो पेड़ों की कटाई होते समय ही वनकर्मियों को खबर रहती है लेकिन मौके पर कोई वनकर्मी नहीं पहुंचता। जिसकी वजह से अवैध कटान में लगे लोगों के हौसलें बढ़े रहते हैं। समय रहते वनों की कटान पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले दिनों में जंगल का आस्तीत्व खत्म होने से इनकार नहीं किया जा सकता

             भारत में आग लगना, वनों की कटाई से होने वाले नुकसानों में से एक है। जंगलों में रहने वाले जानवरों और पक्षियों के प्राकृतिक आवास का विनाश हो रहा है। पेड़ों की लगातार कटाई के साथ, जंगली जानवर और पक्षी जो इन पेड़ों को अपने घरों के रूप में इस्तेमाल करते हैं, उनके पास कहीं जाने का रास्ता नहीं है।
            कटते हुए और वीरान होते जंगलो से पशु पक्षी ही नहीं एक दिन हम भी इतिहास बन जायेंगे। अत:अभी भी समय है, हम नये पेड़ों को अधिक से अधिक लगायें और पेड़ो की लकड़ी का दूसरा प्रयोग खोंजे।
                             राजीव रावत
लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता के लिए   )  

   11
4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Feb-2022 05:09 PM

बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने

Reply

Abhinav ji

19-Feb-2022 10:10 AM

Very nice

Reply

Zakirhusain Abbas Chougule

19-Feb-2022 09:56 AM

बहुत खूब

Reply